2024-11-09T04:55:10
क्या ऑटिस्टिक बच्चे सामान्य जीवन जीते हैं ?
माता-पिता के बच्चे ऑटिज्म होते हैं , उनका यह सवाल बहुत ही आम होता है कि उनका बच्चा नॉर्मल लाइफ जी पाएगा या नहीं और वह बहुत ही परेशान होती है और ट्यूशन बच्चों में तीन तरह के लेवल देखे जाते हैं जैसे कि पहले बच्चे में तीन-चार साल का होता है वह पहले तो नॉर्मल होता है लेकिन एकदम से उसमें बहुत ही ज्यादा चेंज देखने को मिलते हैं वह नॉर्मल से बहुत ही ज्यादा चेंज हो जाता है उसमें गुस्सा बहुत ही बढ़ जाता ह और वह जल्दी से रिस्पांस नहीं करता इन बच्चों के साथ क्या होता है कि क्या तो बच्चों में एकदम से दौरे पड़ने लग जाते हैं या फिर हाई लेवल का फीवर हो जाता है तब उनमें इन सब लक्षण देखने को मिलते हैं ऐसे बच्चों के साथ थेरेपी स्टार्ट करने पर ही उनमें रिकवर होने के चांसेस बढ़ जाते हैं अगर यह सब भी ना पहचान जाए और उनकी थेरेपी ना शुरू करवाई जाए तो उनको ठीक होने में बहुत ही समय लग जाता है वह ठीक तो हो जाते हैं लेकिन बहुत ही समय लगता है ऐसे बच्चे में नॉर्मल लाइफ जी सकते हैं लेकिन उन्हें 50% ही इंप्रूवमेंट देखने को मिलता है ।
दूसरे बच्चे जैसे कि नॉर्मली वह 2 साल के होते हैं और उनकी स्पीच डिले उन में हाइपरएक्टिव बिहेवियर उनका आई कॉन्टेक्ट ना करना नाम पर रिस्पांस ना करना सेटिंग ठीक ना होना ऐसा सब देखने पर माता-पिता उनकी अगर थेरेपी ट्रीटमेंट स्टार्ट करवा दे तो उन्हें जल्दी से ठीक किया जा सकता है ऐसे बच्चे बहुत जल्दी रिकवर कर लेते हैं क्योंकि बच्चे की छोटी उम्र में ही इन सभी लक्षणों को देखकर उनके लेवल पर काम किया जाता है उनके ठीक होने के चांसेस भी 70 से 80% तक हो जाती है और बच्चे के साथ लगातार थेरेपी की जाने के कारण बच्चा बहुत ही जल्दी नार्मल हो जाता है अगर बच्चे के 6 साल तक की उम्र तक उन्हें ना पहचान चाहिए कि बच्चा ऑटिज्म है तो उन्हें ठीक होने के चांसेस बहुत ही काम हो जाते हैं और उन्हें बहुत ही टाइम लगता है । बच्चों को 3 साल की उम्र तक ऑटिज्म नहीं कहा जा सकता क्योंकि बच्चा 3 साल की उम्र तक सब कुछ कर कर लेता है इसीलिए उसे जल्द से जल्द रिकॉग्नाइज करके उनके साथ एफर्ट डालकर उन्हें नॉर्मल लाइफ दे सकते हैं।
तीसरे बच्चे जैसे कि एड एचडी होते हैं वह वर्बल और नॉनवर्बल होते हैं वर्बल के बच्चे तो अपनी कहानियों में ही उलझ कर रखते हैं और वह बहुत ही ध्यान भटकने के लिए इधर-उधर की बातें करते हैं उनके साथ रेगुलर थेरेपी करके उन्हें नॉर्मल किया जा सकता है नॉर्मल वाली बच्चों की साथ भी स्पीच थेरेपी करके उन्हें ठीक किया जा सकता है।
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